Friday, 4 November 2016

       जेन्डर समानता के अग्रदूत थे गाँधी
                                      (गाँधी जयन्ती पर विशेष)
डाॅ0 रत्ना गुप्ता
(स्तंभकार एवं कहानीकार)
              लिंग के आधार पर स्त्री और पुरूष पर भूमिकाओं, जिम्मेदारियों, क्षमताओं, आकांक्षाओं, कौशलों और व्यवहार का ठप्पा लगा देना जेन्डर है और इस ठप्पे के आधार पर स्त्री और पुरूषों से अलग-अलग अपेक्षाएं करना, जेन्डर स्टीरियोटाइपिंग है इस जेन्डर स्टीरियोटाइपिंग की वजह से हम जेन्डर-पक्षपात करने लगते हैं। जेन्डर असमानता जेन्डर पक्षपात का परिणाम है। जेन्डर असमानता आज एक वैश्विक मुद्दा है। थर्ड वल्र्ड कान्फ्रेन्स आन वूमेन बीजिंग में महिलाओं पर हुये तीसरे वैश्विक सम्मेलन से लेकर 2000 में हुये वैश्विक शिक्षा फोरम, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 तथा तत्पश्चात राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 इत्यादि सभी में जेन्डर समानता पर विशेष बल दिया गया है। अभी हाल ही में राष्ट्रीय शिक्षा शिक्षा परिषद (एन.सी.टी.ई.) के लिए जारी किये गये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा में एक विषय जेन्डर, स्कूल एवं सोसाइटी भी सम्मिलित किया गया है इन सभी प्रयासों का उद्देश्य जेन्डर समानता लाना है क्योंकि जेन्डर असमानता समाज में बहुत सी बुराइयों की जननी है, जैसे कन्या भू्रण हत्या, महिला हिंसा इत्यादि। इसका ताजा तरीन उदाहरण है पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में दो दिनों में चार लड़कियों को उनके सिरफिरे आशिकों द्वारा बेहद हिंसक तरीके से मारा जाना। एक को सरेआम चाकू मारे गये, दूसरी को भीड़ के बीच सड़क के किनारे बाईस बार कैंची घोपी गयी, तीसरी को गोली मार गयी लेकिन उसके लाॅकेट ने उसे बचा लिया और चैथी को तीसरी मंजिल से फेक दिया गया। ये लड़किया इसलिए मारी गयी क्योंकि इन्होंने अपने आशिकों के प्रेम निवेदन को ठुकरा दिया। कोई लड़की किसी के प्रेम को ठुकरा सकती है ऐसे व्यवहार की अपेक्षा आज के दौर में भी लड़के नहीं करते और जब ऐसा होता है तो उनके अहंकार को चोट पहुंचती है और वे हिंसक हो जाते हैं। इसके मूल में समस्या जेन्डर की है जो कि सामाजिक प्रक्रिया है इन लड़कों का समाजीकरण इस तरह हुआ होगा कि उनके लिए लड़कियों, को ‘न’ अपेक्षातीत थी। वे उनसे एक निश्चित भूमिका का निर्वहन चाहते थे अर्थात वे उनसे सिर्फ अपने निवेदन के लिए ‘हाँ’ चाहते थे।
2 अक्टूबर को सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी का जन्म दिवस है। आज जिस जेन्डर  समानता की बात हो रही है। गाँधी जी इसके अग्रदूत थे। वे मानते थे कि पुरूष जाति की सबसे भयंकर दुःखदायी तथा पाश्विक भूल नारी के साथ किया गया अन्याय है। उनका विश्वास था कि जब नारी को संसार में पुरूष ही के समान अवसर मिलने लगेगा और पुरूष और नारी दोनों मिलकर परस्पर सहयोग करते हुये आगे बढ़ेंगे तब उसके चमत्कारपूर्ण वैभव का दर्शन होगा। स्त्री जाति को शक्ति और महन्ता के बारे में गांधी जी की सोच जेन्डर मुक्त थी। उन्होंने इसके प्रत्यक्ष उदाहरण भी प्रस्तुत किये। जब तक उन्होंने इस देश के सार्वजनिक जीवन में प्रवेश नहीं किया था स्त्री शक्ति मानो सोयी पड़ी थी। निसंदेह वह गृहलक्ष्मी और माता के रूप में हमारे पारिवारिक जीवन को प्रकाशित, सुशोभित और मंगलमय कर रही थी किन्तु उसकी अन्य लोकोपकारिणी शक्तियों को प्रकट होने का अवसर अभी नहीं मिल पाया था। यह गांधी जी के कार्यकाल में मिला। स्वाधीनता युद्ध में उन्होंने महिलाओं को परम्परागत भूमिका से इतर भूमिका निर्वहन के लिये प्रेरित किया। परिणामस्वरूप, असंख्य महिलाएं पर्दे और अन्तःपुर से बाहर निकल पड़ी और स्वातंत्रय यज्ञ में अपना-2 हविर्भाव अर्पण करने की होड़ करने लगी। कहीं-कहीं तो वे पुरूषों से भी आगे बढ़ गयीं। उन्होंने शराब और विदेशी कपडे़ की दुकानों के सामने धरना दिये। धारासना और बढ़ाला के नमक सत्याग्रह में वीरता का परिचय दिया। गांधी जी ने नारी जगत में एक चेतना उत्पन्न कर दी स्व. श्रीमती रामेश्वरी नेहरू, सरोजिनी देवी, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृतकंुवर, सुचेता कृपलानी, सुशीला नायर और मणिबहन पटेल के नाम, तो केवल भारत में ही नहीं, बाहर के लोग भी जानते हैं। इनके अलावा स्वाधीनता युद्ध के दिनों में कहाँ-2 कितनी महिलाऐं जेल गयीं तथा देश के विभिन्न भागों में अपनी-अपनी रूचि के सेवा कार्यों में लग गयीं उनकी गिनती नहीं की जा सकती।
वास्तव में संसार के अन्य देशों में पुरूषों के समान मताधिकार प्राप्त करने के लिए स्त्रियों को जाने कितने वर्ष राह देखनी पड़ी। परन्तु भारत में स्वतंत्रता की घोषणा के साथ ही एकदम सहज और स्वाभाविक रूप में स्त्रियों को समान अधिकार प्राप्त हो गये। इतने बड़े देश की प्रधानमंत्री बनने का गौरव तो सबसे पहले भारतीय नारी को प्राप्त हुआ आज भारत के सार्वजनिक जीवन में जितनी महिलाएं भाग ले रही हैं इन सबके मूल में गांधी जी का ही प्रभाव है। अगर हम सर्वोदय के मसीहा का जन्म दिवस सच्चे अर्थों मे मनाना चाहते हैं तो हमें जेन्डर की समस्या का हल करना होगा। इसके लिए हमें लोगों को जागरूक करना होगा, जेन्डर सेन्सिटाइजेशन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने होंगे, इन कार्यक्रमों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना होगा, पाठ्य पुस्तकों का विश्लेषण जेन्डर के दृष्टिकोण से करना होगा, दृश्य-श्रव्य मीडिया को जेन्डर सेन्सिटिव बनाना होगा, जेन्डर मुद्दे उठाने होंगे, विद्यालयों में पाठ्यसहगामी कार्यक्रमों जैसे नाटक, कविता, कहानी, गीत आदि के माध्यम से छात्रों के दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा, विश्वविद्यालय स्तर पर जेन्डर मुद्दों पर शोध कार्यों को बढ़ावा देना होगा तभी हम एक जेन्डर फ्री समाज की कल्पना कर सकते है। ऐसा कब होगा, यह भविष्य के गर्भ में है।

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