डाॅ0 रत्ना गुप्ता
शिक्षाविद्
आज जमाना तेजी से बदल रहा है। उसके साथ ही इंसान की सोच भी। आजकल माता पिता और बच्चों की दूरियाॅं आम बात हो गई है। माता पिता और बच्चों का वर्षों पुराना रिश्ता काफी हद तक खत्म हो गया है। जनरेशन गैप के चलते माता पिता तिरस्कार का शिकार होने लगे है। हाई-टेक सन्तान अपने माता पिता को पुराने ख्यालों वाला समझने लगी हैं। लेकिन कभी सोचा है कि समाज के इस परिदृश्य का नतीजा आने वाले कुछ सालों में क्या होगा ?
परिवार के मामले में वेस्टर्न कल्चर फाॅलों करते करते हम न पूरी तरह से पाश्चात्य बन पाऐगें और न ही ठीक से हिन्दुस्तानी रह जायेगें।
कैम्ब्रिज एडवान्स्ड लर्नर डिक्सनरी के अनुसार ‘‘ जेनरेशन गैप इज ए सिचुएशन इन व्हिच ओल्डर एण्ड यंगर पीपुल्स डू नाॅट अन्डरस्टैन्ड ईज अदर विकाज आॅफ देअर डिफरेन्ट एक्सपीरिएन्सेज, ओपीनियन्स हैविट्स एण्ड विहेवियर।’’
बैब्स्टर’स न्यू वल्र्ड काॅलिज डिक्श्नरी के अनुसार ‘‘जेनरेशन गेप इज द सेट आॅफ डिफरेन्सेज इन आइडियाज एटीटयूडस एक्सपीरिएन्सेज दैट एक्जिस्ट बिटवीन एन ओल्डर एण्ड ए यंगर जेनरेशन’’
इस प्रकार पीढ़ी अन्तराल का अर्थ है विभिन्न आयु वर्ग के लोगों के मध्य दृष्टिकोणों की भिन्नता जिसके परिणामस्वरूप आपसी समझ कम हो जाती है। यह दृष्टिकोणों की भिन्नता मूल्यों और विश्वासों, क्रियाओं एवं रूचियों, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मानकों से सम्बन्धित होती है। इसके परिणामस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है तथा आपसी लगाव कम हो जाता है। वर्तमान में इसका तात्पर्य युवाओं और उनके माता पिता तथा दादा दादी के मध्य दृष्टिकोणों की भिन्नता से है। यद्यपि यह पीढ़ी अन्तराल हर युग में रहा है। लेकिन बीसवी सदी और ईक्कसवी सदी में इसकी जड़े अधिक फैल गयी हैं। इसके परिणामस्वरूप युवा एवं उनके माता पिता के मध्य संप्रेषण की कमी हो गयी है।
वर्तमान में ज्यादातर देखने में आ रहा है कि युवा वर्ग वृद्धों का अनादर कर रहा है तो बुजुर्ग पीढ़ी को युवाओं की स्वच्छन्द जीवन शैली नही भाती है। प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इन पीढ़ियों के संघर्ष के लिये उत्तरदायी कौन है, कुछ लोगों का मानना है कि बुजुर्ग आज के युवक युवतियों पर तीखी टीका टिप्पणी करते है। कहते है कि हमारे जमानें में तो मर्यादा थी अब तो ऐसा लगता है कि सारी लाज शर्म बेंच खाई है। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि बुजुर्ग सदैव ही दकियानूसी व आउट आॅफ डेट परम्पराओं को ढो रहे है। स्थिति यह है कि युवा पीढ़ी को अपनी जीवन शैली में दादा दादी तो दूर माता पिता की दखल अन्दाजी तक सहन नही होती है। पीढियों में संघर्ष के ये कारण हो सकते है। लेकिन इनके प्रमुख कारण निम्नलिखित प्रतीत होते है।
पहला कारण लगता है संस्कार विहीन शिक्षा/आज की शिक्षा में मूल्यों का नितान्त अभाव पाया जाता है। हम परस्पर कैसा व्यवहार करें, परिवार में एक दूसरे के साथ सम्बन्ध कैसे हो ? दया प्रेम, सेवा, त्याग व सहनशीलता का जीवन में कितना मूल्य है ? माता पिता दादा दादी के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है? हम आज यह सब भूलते जा रहे है। संस्कार हीनता के कारण पीढियों के मध्य दरारें पैदा होती जा रही है।
दूसरा मुख्य कारण है आर्थिक परिस्थिति, बढ़ती हुई महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, अल्प आय आदि ऐसे अनेक कारण है जिनकी वजह से परिवार में अधिक सदस्यों की संख्या के खर्चों के बीच बुजुर्गों की बीमारी बोझ स्वरूप लगती है।
तीसरा कारण है आज की यन्त्रवत जीवन शैली। सुबह से शाम, काम ही काम। किसी शायर ने कहा है कि ‘सुबह होती है शाम होती है उम्र यूॅं ही तमाम होती है।’ इन स्थितियों में जीवन मूल्यों, आदर-अनादर, सेवा की आशा करना बेमानी है। बुजुर्ग अपने बेटे बहुओं की व्यस्तता को नजर अन्दाज कर उसे अपनी उपेक्षा मानने लगते हैं। बस यहीं से शुरू हो जाती है संघर्ष की शुरूआत।
चैथा कारण है सामाजिकता का अभाव। इसके कारण मानवीय संवेदनाएं व्यक्ति उन्मुख होती जा रही है। वास्तव में पीढियों का संघर्ष आज की ज्वलन्त समस्या है। पाश्चात्य शिक्षा पद्धति, अर्थ प्रधान समाज तथा अनेक प्रकार के सामाजिक मनौवैज्ञानिक कारणों से नई व पुरानी पीढियों में संघर्ष बढ़ता ही जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप ईष्र्या, द्वेष, कलह, उन्माद, निराशा तथा मानसिक उद्वेग बढ़ रहे है। कभी तो इस संघर्ष से उत्पन्न मानसिक तनाव - गृह क्लेश, पागलपन तथा आत्महत्या तक में परिणति होते देखे गया है। इस प्रकार के तनाव से जीवन में कटुता, विषाक्ता और खिन्नता भरी रहती है। जिसके कारण आत्मविश्वास के सारे मार्ग अवरूद्ध हो जाते है। अतः इस पीढ़ी अन्तराल को पाटना आवश्यक है। यह कार्य शिक्षा के द्वारा किया जा सकता है। इसके लिये शिक्षा में निम्न प्रावधान करने होगें -
- शिक्षा को मूल्यपरक बनाना होगा।
- नैतिक शिक्षा में श्रवण कुमार जैसे जीवन चरित्रों को सम्मिलित करना होगा।
- शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाना होगा।
- साहित्य कला संगीत को शिक्षा के पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाना होगा।
- संयुक्त परिवार के लाभ एकल परिवार के दोष पाठ्यक्रम की विषयवस्तु के रूप में सम्मिलित किये जायें।
- बदलते मूल्य विषय पर सेमीनार का आयोजन किया जाये जिसमें अभिभावकों को आमंत्रित किया जाये
- बदलते मूल्यों पर नाटक, कविता, कहानी, गीत, प्रतियोगिताऐं, आयोजित की जाये और सभी कार्यक्रमों में अभिभावकों को आमंत्रित किया जाये।
- ग्रान्ड पेरेन्टस डे का सेलीब्रेशन किया जाये।
- शिक्षा समायोजन की क्षमता का विकास करें।
- सामाजिक गुणों का विकास करें।
- छात्रों को संवेदनशील बनाने का प्रयास किया जाये।
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