Friday, 16 September 2016

काम आई माँ की सीख ( कहानी )

काम आई माॅं की सीख
माॅं रसोई में थी। मेरी छोटी बहिन तनु स्कूल से घर आयी। कंधे पर स्कूल बैग टांगे, हाथ में पानी की बोतल लटकाये, पसीने से लथपथ, थकी हारी सी मानो कि दुनिया के सारे कष्ट सहकर आयी हो। माॅं दौड़कर पानी लेकर आयी और उसे अपने हाथों से पानी पिलाने लगीं, प्यार भरी नजरों से उसे एक टक निहारिती हुई। जैसे-जैसे तनु पानी पी रही थी, माॅं के चेहरे पर चमक आ रही थी, जैसे कि तनु का हर घॅूंट माॅं की प्यास बुझा रहा हो। इतने में आया तनु के कपड़े लेकर आ गई और बोली, ‘बीबी जी! हम बदल देते हैं बिटिया के कपड़े’ माॅं ने कहा, ‘नही, तुम रसोई देखो’ और इतना कहकर उसके हाथ से कपड़े ले लिये। आया रसोई में चली गई माॅं ने तनु के सिर से आसमानी कलर के हेयरबैन्ड में लगी पतली काली चिमटियाॅं निकालीं और ड्रेसिंग टेबिल का ड्रार खींचकर उसमें रख दीं। हेयर बैण्ड निकाला उसे ड्रेसिंग टेबिल की साइड की अल्मारी में रखा और आई कार्ड निकालकर दीवार की कील पर टांग दिया। एक एक करके टाॅप के बटन खोले और गले के ऊपर से टाॅप उतारा और स्कर्ट का हुक खोल कर पैर के नीचे से स्कर्ट निकाला। जब माॅं तनु के कपड़े बदल रहीं थीं तो उनका संवाद तनु से जारी था कभी शाब्दिक और कभी अशाब्दिक। माॅं ने तनु से पूछा, ‘बेटा! आज स्कूल में क्या-क्या हुआ।’ तनु बोली, ‘मम्मीऽ...... पता है...., आज स्कूल में पावनी से मेरा झगड़ा हो गया।’ ‘वो क्यों,’ माॅं ने पूछा। ‘क्योंकि वह मेरी जगह पर अपनी काॅपी रखे जा रही थी........। वह मेरी मेज की पार्टनर है न.......... जब मैने पावनी से कहा........ मेरी तरफ क्यों रख रही हो........? अपनी तरफ रखो अपनी कापी........, तो इसी बात पर उसने मुझसे कट्टी कर ली।’
माॅं ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और उसके पैर से काले चमड़े के जूते निकालकर, उसके सफेद रंग के घुटने तक के मोजे हाथ से गोल गोल घुमाती हुयी उतारने लगीं और दोनो मोजों को जूतों में लगा दिया। वे ऐसे लग रहे थे मानों टूटे गोलों के दो टुकड़े हों।
माॅं ने तनु को काली स्कर्ट और ग्रे टाप पहना दिया और आया को आवाज लगायी, ‘‘तनु की ड्रेस तह बनाकर अलमारी में रख दो।’’ आया आयी और ड्रेस लेकर चली गई। माॅं ने तनु से कहा ‘हाथ मुॅंह धो लो। आॅंखों में पानी डालकर आॅंखों को अच्छी तरह धो लेना।’ तनु ने अच्छी बच्ची बनकर माॅं की बात मान ली। माॅं ने टाॅवेल से धीरे धीरे उसका मुॅंह पोंछा और उसे अपने अंक में भर कर सोफे पर बैठ गयीं। माॅं ने तनु से कहा, ‘तनु बेटा........!   गलती तो पावनी की है .......लेकिन तुम्हारे कहने का तरीका गलत था। तुम्हे इस तरह पावनी से नही कहना चाहिये था। अगर तुम दूसरे तरीके से उससे यह बात कहतीं, तो उसे बुरा नही लगता’, तनु ने पूछा, ‘कैसे कहती मम्मी?’ माॅं ने कहा ‘प्लीऽऽज, थोड़ा सा अपनी पुस्तक उधर कर लो.........! मुझे बहुऽत परेशानी हो रही है।’ ‘तो क्या वह मेरी बात मान जाती?’
तनु ने पूॅंछा ‘हाॅं’, माॅं ने आश्वस्त होकर कहा। तनु धीरे धीरे अपना सिर माॅं की गोद में रखकर लेट गई। माॅं उसके बालों में बड़े प्यार से हाथ फिराते हुये बोली, ‘तनु! तुम्हे अच्छा नही लग रहा होगा कि पावनी से तुम्हारी बोल चाल बन्द हो गई।’ ‘हाॅं बिल्कुल नही’, तनु ने कहा। ‘इसी प्रकार पावनी को भी अच्छा नही लग रहा होगा।’ माॅं ने कहा, ‘कल तुम उससे जाकर मिल्ला कर लेना’। ‘मैं क्यों मिल्ला करूॅं........? गलती तो उसकी है‘, तनु बोली ‘तभी तो जरूरी है कि तुम मिल्ला करो। क्योंकि जिसकी गलती होती है उसे मिल्ला करने में शर्म महसूस होती है।’ ‘सऽच मम्मी’, तनु ने विस्मित होकर कहा।
तनु को माॅं की बात समझ आ गई। उसने दूसरे दिन पावनी से जाकर मिल्ला कर ली। अगली बार कक्षा-कक्ष में तनु की मेज की पार्टनर अनन्या थी तो उसने भी मेज की अधिक जगह घेर ली और जब तनु को परेशानी हुई, तो उसे माॅं की बतायी सीख याद आ गयी। इसलिये उसने अनन्या से बड़े मधुर स्वर में कहा ‘बहुत परेशानी हो रही है अनन्या! प्लीज, अपनी काॅपी थोड़ा अपनी तरफ कर लो।’ अनन्या ने तनु की बात सहर्ष मान ली। इस प्रकार, इस बार माॅं की दी हुई सीख से तनु की समस्या भी हल हो गयी और अनन्या से उसका मनमुटाव भी नही हुआ।
आज मै बड़ा हो गया हूॅं। आज मै समझ सकता हूॅं कि माॅं ने आया से तनु की पोशाक न बदलवाकर स्वयं क्यों बदली। माॅं आटे के सने हाथ झटपट झटपट धोकर आयीं और तनु की पोशाक बदलने लगीं। शायद वह तनु की पोशाक बदलते बदलते उससे संवाद करना चाहतीं थीं। तनु के अन्र्तमन में प्रवेश करके उस दिन के सम्पूर्ण घटनाक्रम और उस घटनाक्रम में तनु के व्यवहार के विषय में जानना चाहतीं थीं............। उसे सही मार्गदर्शन देकर बड़े सहज भाव से उसे मानवीय गुणों से सिचिंत करना चाहती थी। वे सफल रहीं। इस घटना के माध्यम से उन्होने तनु में विनम्रता, संवेदनशीलता और मधुर संवाद जैसे बहुमूल्य गुणों को आत्मसात करा दिया जिनका चारों ओर आज मुझे नितान्त अभाव दिखाई देता है। अगर माॅं ने आया से तनु की पोशाक बदलवायी होती तो वह उस दिन के घटनाक्रम से कुछ न सीख पायी होती। माॅं का सानिध्य और संवाद ही क्षरण होते मूल्यों से हमारी पीढ़ी को बचा सकता है।



( वीथिका स्तम्भ, दैनिक जागरण, लखनऊ, 16 नवम्बर 2015 में प्रकाशित)



Wednesday, 14 September 2016

सुचना एवं तकनीकी के युग में हिंदी भाषा की चुनौतियाँ ( लेख )


                                   सूचना एवं संचार तकनीकी के युग में हिन्दी भाषा की चुनौतियाॅं 
                                                            (हिन्दी दिवस पर विशेष)
                                                                    डाॅ0 रत्ना गुप्ता
(शिक्षाविद्)
14 सितम्बर को हिन्दी दिवस है। इस दिन संविधान ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर  सम्पूर्ण भारत में यह दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। 
हिन्दी भारत के एक बड़े जनसमूह की मातृभाषा है मातृ भाषा अपने मातृ-पिता से प्राप्त भाषा है। उसमें जड़ है, स्मृतियाॅं है व विंव भी। मातृभाषा को एक भिन्न कोटि का संास्कृतिक आचरण देती है। जो किसी अन्य भाषा के साथ शायद संभव नही है। मातृभाषा के साथ कुछ ऐसे तत्व जुड़़े होते है जिसके कारण उनकी संप्रेषणीयता उस भाषा के बोलने वाले के लिये अधिक होती है। 
आज सूचना संचार तकनीकी ने हिन्दी भाषा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बहुमूल्य साहित्य अन्र्तजाल पर उपलब्ध है। हम अपने प्रिय साहित्यकार की रचना कभी भी कहीं भी पढ़ सकते है, जिन साहित्यकारों का साहित्य, अन्र्तजाल पर नही है उसको डिजिटलाइज्ड करने का प्रयास किया जा रहा है। अभी हाल ही में लखनऊ में आयोजित भगवतीवती चरण वर्मा के जन्म दिवस समारोह में उनके साहित्य को डिजिटलाइज्ड करने का आश्वासन दिया गया। इसके अतिरिक्त बहुत सी हिन्दी पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन भी आन-लाइन होता है जैसे हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश, बाल वाणी और साहित्य भारती जैसी उत्कृष्ट पत्रिकाओं का प्रकाशन आॅन लाइन करता है। 
इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर की कुछ संस्थाऐं जैसे एन0ई0यू0पी0ए0, एन0सी0ई0आर0टी0, एन0सी0टी0ई0 भी हिन्दी भाषा में परिप्रेक्ष्य, आधुनिक भारतीय शिक्षा प्राथमिक शिक्षक और अन्वेषिका जैसे प्रतिष्ठित जर्नस का आन लाइन प्रकाशन करती है। फेसबुक और ब्लाग्स पर भी लोग लेखन कार्य करते है। जिससे नये लोग भी लिखने को प्रेरित होते है। हिन्दी सिनेमा ने भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार में बड़ी भूमिका निभाई है। वास्तव में कुछ हिन्दी कलाकार विदेशों में इतने लोकप्रिय है कि उनकी फिल्में देखने के लिये लोग हिन्दी सीखते है।ं लाखों रूसवासियों ने फिल्मों को समझने के लिए ही हिन्दी सीखी। रूस के पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन का तो पसंदीदा गाना ही था ‘आवारा हूॅं।’ अमेरिका और जापान में भी हिन्दी सिखाने वाले स्कूलों में चर्चित हिन्दी फिल्मों के संवादों और गानों के माध्यम से हिन्दी सिखाई जाती है। लेकिन सूचना संचार तकनीकी का एक स्याह पक्ष भी है। इसने हिन्दी भाषा जैसे कौशलों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। 
बात लेखन कौशल में गिरावट से शुरू करते है। संदेश और ई-मेल में अक्षरों की सीमा निश्चित होती है। इसलिये मितव्ययी भाषा का प्रयोग करते है इसके लिये स्लेंग शब्दों या वर्चुअल शब्दों का प्रयोग करते है। जल्दी की वजह से व्याकरण का ध्यान भी नही रखा जाता। बहुत से नवयुवक व्यवहार में भी इसी भाषा का प्रयोग करने लगते है। परीक्षा पुस्तिका में भी ऐसे उदाहरण देखने को मिल जायेगें। इस प्रकार आज की पीढ़ी की लिखावट त्रुटिपूर्ण हो रही है दूसरी बात लिखावट के सन्दर्भ में यह है कि हिन्दी के टंकण में अधिक समय लगता है इसलिये हिन्दी को अंगे्रजी में लिखते हैं अर्थात वाक्य विन्यास हिन्दी का होता है और लिपि अंग्रेजी की। साथ ही ब्लाग लिखने वाले सोचते हैं कि अगर वे अंग्रेजी में लिखते है तो उनका ब्लाग अधिक लोग पढ़ेगें तथा अंग्रेजी पत्रिका समाचार पत्र और जर्नल में प्रकाशन या यू-टयूब पर अंग्रेजी में लोड किया हुआ उन्हे अधिक बड़े दायरे में पहचान दिलाएगा। इसलिये वे लोग जो समान रूप से हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा पर अधिपत्य रखते है वे भी अंग्रेजी की ओर ही रूख कर रहे है। 
इन नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिये शैक्षिक, सामाजिक एवं सरकारी प्रयास करने होगें। हिन्दी माध्यम के अच्छे स्कूल खोलने होगें, हिन्दी को विज्ञान आधारित बनाना होगा, हिन्दी पुस्तकों के प्रति नवयुवकों का रूझान बढाना होगा, इसके लिये सचल पुस्तकालयों के माध्यम से हिन्दी पुस्तकों को पाठकों के करीब लाना होगा एवं विद्यालयी एवं जन पुस्तकालयों में अधिकाधिक हिन्दी भाषा एवं साहित्य की पुस्तकें रखनी होगी। हिन्दी पुस्तक मेलों का जगह जगह आयोजन करना होगा। पाठ्यक्रम के अन्तर्गत हिन्दी पुस्तक मेलों के भ्रमण को अनिवार्य करना होगा, हिन्दी साहित्य, हिन्दी भाषा एवं व्याकरण तथा हिन्दी की रचनाओं के लिये दिये जाने वाले पुरस्कार सम्बन्धी विषय-वस्तु को सम्मिलित करना होगा, हिन्दी लेखन एवं वाचन प्रतियोगिताओं का आयोजन करना होगा, साहित्य के शिल्प पर कार्यशालाओं का आयोजन करना होगा एवं अधिकाधिक काव्य गोष्ठियों एवं काव्य सम्मेलनों का आयोजन करना होगा। समय-सारिणी में एक चक्र पुस्तकालय के लिये आबंटित करना होगा एवं पुस्तकालय में छात्रों की उपस्थिति को सुनिश्चित करना होगा। यह सब हमें प्राथमिक स्तर से ही शुरू करना होगा लेकिन सबसे पहले शिशुकाल से ही माता-पिता को बच्चों को टाटा, बाई-बाई, गुडमार्निंग के स्थान पर शुभ विदा, शुभ प्रभात कहना सिखाना होगा और हमें हिन्दी में हस्ताक्षर करने का प्रण लेना होगा। जब मोदी गुजराती प्रदेश छोडकर हिन्दी प्रदेश आ सकते है, जब हम 1857 की लड़ाई हिन्दी में जीत सकते है तो संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी की लड़ाई क्यों नही जीत सकते। हमें हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने का पुनः प्रयास करना होगा एवं हिन्दी एक अविकसित भाषा है इस धारणा को दूर करना होगा। हिन्दी एक जानदार भाषा है, वह जितनी बढ़ेगी उतना ही देश का मान होगा। इसलिये हमें हिन्दी को गंगा नही बल्कि समुद्र बनाना होगा। 

Monday, 5 September 2016

डाॅ0 एस0 राधाकृष्णन युवाओं के पथ प्रदर्शक
(जन्म दिवस पर विशेष)
यह समाज एक बडे परिवार की तरह है जहाॅं कई धर्म और जाति के लोग एक साथ मिलकर रहते है लेकिन समाज बनाने का काम करते है। समाज के शिल्पकार यानि शिक्षक। शिक्षक समाज के ऐसे शिल्पकार होते है जो बिना किसी मोह के इस समाज को सजाते है। शिक्षकों की महत्ता को सही स्थान दिलाने के लिए ही हमारे देश में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पुरजोर कोशिशें की जो खुद एक बेहतरीन शिक्षक थे।
5 सितम्बर को डाॅ0 एस0 राधाकृष्णन का जन्म दिवस है। इस अवसर पर उनका व उनके दर्शन का स्मरण हो आना लाजमी है। विशेषकर तब, जबकि आज के युवा, आत्म विकास से वंचित, आत्म नियन्त्रण और आत्म-विश्वास से नदारद और मानवता से शून्य होकर पतन के गर्त में गिर रहे हों। ऐसे समय में उनका दर्शन युवाओं को एक दिशा देता हुआ प्रतीत होता है।
उनका यह मानना था कि-‘शिक्षक वह नही जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंॅंसे बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे।’
डाॅ0 राधाकृष्णन के ये शब्द समाज में शिक्षकों की सही भूमिका को दिखाते है। शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही ही नही बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्र को परिचित कराना भी होता है। ऐसे अनमोल विचार उनकी रचनाओं में यत्र तत्र बिखरे पड़े है जो वर्तमान में बड़े प्रासंगिक है।

डाॅ0 एस0 राधाकृष्णन का विश्वास था कि मनुष्य को आत्मिक विकास के लिये कुछ समय तक एकान्त में ध्यान लगाना चाहिए। सप्ताह में कम से कम एक दिन विश्राम और कुछ देर मौन रहना चाहिए।’ वर्तमान में मौन और विश्राम दोनो ही युवाओं की जीवन शैली से विलुप्त होते जा रहे है। कार्य-संस्कृति का युग है। युवा अधिक से अधिक काम करके, अधिक से अधिक भौतिक सुख प्राप्त करना चाहते है। वे मौन के समय भी मौन नही होते, कभी वाट्सऐप, कभी फेसबुक, कभी ट्विटर के माध्यम से उनकी संचार प्रक्रिया सदैव चलती रहती है। सुबह उठकर वे धार्मिक व आध्यात्मिक क्रियाओं के स्थान पर सर्वप्रथम वाट्सऐप या फेसबुक का एकाउन्ट खोलते हंै, और कभी-कभी तो रात को उठकर भी। वे मशीनी युग में जी रहे हैं और स्वयं के जीवन के प्रति भी संवेदनशील नहीं हैं। वे क्या चाहते है उनके पास इस विषय पर सोचनें का भी समय नहीं है। ऐसे समय में युवाओं को एस0राधाकृष्णन की सीख को व्यवहार में लाने की जरूरत है।
आज की पीढ़ी में आत्म नियन्त्रण की कमी है मन वाणी और कर्म पर नियन्त्रण नहीं है। अहंकार बहुत अधिक है। अपने अहं की तुष्टि के लिए यह पीढ़ी किसी भी हद तक गिर जाती है। कभी-कभी तो वह मानवता की नृशंस हत्या करने से भी पीछे नही रहती। ऐसे समय में एस0राधाकृष्णन के विचार कि मनुष्य आत्म नियन्त्रण के द्वारा ही अपनी मंजिल तक पहुच सकता है और अपने अहं को मिटाना ही मुक्ति का मार्ग है, बड़े समसामायिक एवं ग्रहणीय लगते हैं। इतना ही नही आज सफलता जैसे ही युवाओं के हाथ लगती है उनके पैर जमीन पर नही रहते वे आसमान में उड़ने लगते हैं। परिणामस्वरूप उनके मित्र, शुभचिन्तक आदि उनसे दूर होते जाते है। और इसकी परिणति अकेलेपन के रूप में होती है। अपनी खुशी और दुखः साझा करने के लिये उनके पास अपने नहीं होते। परिणामस्वरूप शनैः-शनैः वे अवसाद के शिकार होते जाते हैं। इसलिये एस0 राधाकृष्णन युवाओं को आकाश में उड़ते हुये भी अपने पाॅंव जमीन पर दृढ़ता से जमाये रखने के लिए सचेत करते हैं।
एस0र ाधाकृष्णन मानवता के पुजारी है वह युवाओं को समझाते है ‘हमारी मानवीय प्रकृति हमेशा एक है, उसकी आकाॅंक्षायें आदर्श हमेशा एक जैसे है चाहें चमड़ी अलग अलग क्यों न हो।’ आज युवा धर्म, जाति, संस्कृति, प्रान्त, सम्प्रदाय के नाम पर आपसी फूट का शिकार हैं, आये दिन संघर्ष व आन्दोलन होते हंै, जिनमें मानवता दम तोड़ती दिखती है। उ0प्र0 के मेरठ दंगे, दादरी काण्ड, कुलवर्गी प्रकरण इसके ताजा तरीन उदाहरण हैं। विश्व पटल पर फ्रांस में राष्ट्रीय दिवस पर हुई आतंकवादी घटना इसका ताजा तरीन उदाहरण है। आज विश्व एकता खतरे में प्रतीत होती है, अतः एस0 राधाकृष्णन की विश्व मानव एवं नैतिक आन्दोलनों की संकल्पना स्वीकार्य लगती है। वे विश्व शान्ति को एक सपना नही आवश्यकता मानते थे।
आज की युवा पीढ़ी को डाॅ0 एस0 राधाकृष्णन के विचारों से सीख लेने की जरूरत है। उनके विचारों को अपनाकर यह पीढ़ी सफलता के अनन्त आकाश में अबाध गति से विचरण कर सकती है और शाइनिंग इण्डिया और मेक इन इण्डिया का सपना सच कर सकती है। आइये मिलकर मनुष्य बनने का संकल्प ले क्योंकि ‘मानव दानव बन जाता है तो यह उसकी हार है अगर महामानव बन जाता है तो यह चमत्कार है और मानव मनुष्य बन जाता है, तो यह उसकी जीत है’। आइये मिलकर इसी ‘जीत’ का स्वप्न देखें और इसे साकार करें तभी सच्चे अर्थों में हम डाॅ0 राधाकृष्णन का जन्म दिवस मनायेगें।

(आज के स्वतन्त्र भारत में प्रकाशित लेख)