डाॅ0 एस0 राधाकृष्णन युवाओं के पथ प्रदर्शक
(जन्म दिवस पर विशेष)
यह समाज एक बडे परिवार की तरह है जहाॅं कई धर्म और जाति के लोग एक साथ मिलकर रहते है लेकिन समाज बनाने का काम करते है। समाज के शिल्पकार यानि शिक्षक। शिक्षक समाज के ऐसे शिल्पकार होते है जो बिना किसी मोह के इस समाज को सजाते है। शिक्षकों की महत्ता को सही स्थान दिलाने के लिए ही हमारे देश में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पुरजोर कोशिशें की जो खुद एक बेहतरीन शिक्षक थे।
5 सितम्बर को डाॅ0 एस0 राधाकृष्णन का जन्म दिवस है। इस अवसर पर उनका व उनके दर्शन का स्मरण हो आना लाजमी है। विशेषकर तब, जबकि आज के युवा, आत्म विकास से वंचित, आत्म नियन्त्रण और आत्म-विश्वास से नदारद और मानवता से शून्य होकर पतन के गर्त में गिर रहे हों। ऐसे समय में उनका दर्शन युवाओं को एक दिशा देता हुआ प्रतीत होता है।
उनका यह मानना था कि-‘शिक्षक वह नही जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंॅंसे बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे।’
डाॅ0 राधाकृष्णन के ये शब्द समाज में शिक्षकों की सही भूमिका को दिखाते है। शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही ही नही बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्र को परिचित कराना भी होता है। ऐसे अनमोल विचार उनकी रचनाओं में यत्र तत्र बिखरे पड़े है जो वर्तमान में बड़े प्रासंगिक है।
डाॅ0 एस0 राधाकृष्णन का विश्वास था कि मनुष्य को आत्मिक विकास के लिये कुछ समय तक एकान्त में ध्यान लगाना चाहिए। सप्ताह में कम से कम एक दिन विश्राम और कुछ देर मौन रहना चाहिए।’ वर्तमान में मौन और विश्राम दोनो ही युवाओं की जीवन शैली से विलुप्त होते जा रहे है। कार्य-संस्कृति का युग है। युवा अधिक से अधिक काम करके, अधिक से अधिक भौतिक सुख प्राप्त करना चाहते है। वे मौन के समय भी मौन नही होते, कभी वाट्सऐप, कभी फेसबुक, कभी ट्विटर के माध्यम से उनकी संचार प्रक्रिया सदैव चलती रहती है। सुबह उठकर वे धार्मिक व आध्यात्मिक क्रियाओं के स्थान पर सर्वप्रथम वाट्सऐप या फेसबुक का एकाउन्ट खोलते हंै, और कभी-कभी तो रात को उठकर भी। वे मशीनी युग में जी रहे हैं और स्वयं के जीवन के प्रति भी संवेदनशील नहीं हैं। वे क्या चाहते है उनके पास इस विषय पर सोचनें का भी समय नहीं है। ऐसे समय में युवाओं को एस0राधाकृष्णन की सीख को व्यवहार में लाने की जरूरत है।
आज की पीढ़ी में आत्म नियन्त्रण की कमी है मन वाणी और कर्म पर नियन्त्रण नहीं है। अहंकार बहुत अधिक है। अपने अहं की तुष्टि के लिए यह पीढ़ी किसी भी हद तक गिर जाती है। कभी-कभी तो वह मानवता की नृशंस हत्या करने से भी पीछे नही रहती। ऐसे समय में एस0राधाकृष्णन के विचार कि मनुष्य आत्म नियन्त्रण के द्वारा ही अपनी मंजिल तक पहुच सकता है और अपने अहं को मिटाना ही मुक्ति का मार्ग है, बड़े समसामायिक एवं ग्रहणीय लगते हैं। इतना ही नही आज सफलता जैसे ही युवाओं के हाथ लगती है उनके पैर जमीन पर नही रहते वे आसमान में उड़ने लगते हैं। परिणामस्वरूप उनके मित्र, शुभचिन्तक आदि उनसे दूर होते जाते है। और इसकी परिणति अकेलेपन के रूप में होती है। अपनी खुशी और दुखः साझा करने के लिये उनके पास अपने नहीं होते। परिणामस्वरूप शनैः-शनैः वे अवसाद के शिकार होते जाते हैं। इसलिये एस0 राधाकृष्णन युवाओं को आकाश में उड़ते हुये भी अपने पाॅंव जमीन पर दृढ़ता से जमाये रखने के लिए सचेत करते हैं।
एस0र ाधाकृष्णन मानवता के पुजारी है वह युवाओं को समझाते है ‘हमारी मानवीय प्रकृति हमेशा एक है, उसकी आकाॅंक्षायें आदर्श हमेशा एक जैसे है चाहें चमड़ी अलग अलग क्यों न हो।’ आज युवा धर्म, जाति, संस्कृति, प्रान्त, सम्प्रदाय के नाम पर आपसी फूट का शिकार हैं, आये दिन संघर्ष व आन्दोलन होते हंै, जिनमें मानवता दम तोड़ती दिखती है। उ0प्र0 के मेरठ दंगे, दादरी काण्ड, कुलवर्गी प्रकरण इसके ताजा तरीन उदाहरण हैं। विश्व पटल पर फ्रांस में राष्ट्रीय दिवस पर हुई आतंकवादी घटना इसका ताजा तरीन उदाहरण है। आज विश्व एकता खतरे में प्रतीत होती है, अतः एस0 राधाकृष्णन की विश्व मानव एवं नैतिक आन्दोलनों की संकल्पना स्वीकार्य लगती है। वे विश्व शान्ति को एक सपना नही आवश्यकता मानते थे।
आज की युवा पीढ़ी को डाॅ0 एस0 राधाकृष्णन के विचारों से सीख लेने की जरूरत है। उनके विचारों को अपनाकर यह पीढ़ी सफलता के अनन्त आकाश में अबाध गति से विचरण कर सकती है और शाइनिंग इण्डिया और मेक इन इण्डिया का सपना सच कर सकती है। आइये मिलकर मनुष्य बनने का संकल्प ले क्योंकि ‘मानव दानव बन जाता है तो यह उसकी हार है अगर महामानव बन जाता है तो यह चमत्कार है और मानव मनुष्य बन जाता है, तो यह उसकी जीत है’। आइये मिलकर इसी ‘जीत’ का स्वप्न देखें और इसे साकार करें तभी सच्चे अर्थों में हम डाॅ0 राधाकृष्णन का जन्म दिवस मनायेगें।
(आज के स्वतन्त्र भारत में प्रकाशित लेख)
(जन्म दिवस पर विशेष)
यह समाज एक बडे परिवार की तरह है जहाॅं कई धर्म और जाति के लोग एक साथ मिलकर रहते है लेकिन समाज बनाने का काम करते है। समाज के शिल्पकार यानि शिक्षक। शिक्षक समाज के ऐसे शिल्पकार होते है जो बिना किसी मोह के इस समाज को सजाते है। शिक्षकों की महत्ता को सही स्थान दिलाने के लिए ही हमारे देश में सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पुरजोर कोशिशें की जो खुद एक बेहतरीन शिक्षक थे।
5 सितम्बर को डाॅ0 एस0 राधाकृष्णन का जन्म दिवस है। इस अवसर पर उनका व उनके दर्शन का स्मरण हो आना लाजमी है। विशेषकर तब, जबकि आज के युवा, आत्म विकास से वंचित, आत्म नियन्त्रण और आत्म-विश्वास से नदारद और मानवता से शून्य होकर पतन के गर्त में गिर रहे हों। ऐसे समय में उनका दर्शन युवाओं को एक दिशा देता हुआ प्रतीत होता है।
उनका यह मानना था कि-‘शिक्षक वह नही जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंॅंसे बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे।’
डाॅ0 राधाकृष्णन के ये शब्द समाज में शिक्षकों की सही भूमिका को दिखाते है। शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही ही नही बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्र को परिचित कराना भी होता है। ऐसे अनमोल विचार उनकी रचनाओं में यत्र तत्र बिखरे पड़े है जो वर्तमान में बड़े प्रासंगिक है।
डाॅ0 एस0 राधाकृष्णन का विश्वास था कि मनुष्य को आत्मिक विकास के लिये कुछ समय तक एकान्त में ध्यान लगाना चाहिए। सप्ताह में कम से कम एक दिन विश्राम और कुछ देर मौन रहना चाहिए।’ वर्तमान में मौन और विश्राम दोनो ही युवाओं की जीवन शैली से विलुप्त होते जा रहे है। कार्य-संस्कृति का युग है। युवा अधिक से अधिक काम करके, अधिक से अधिक भौतिक सुख प्राप्त करना चाहते है। वे मौन के समय भी मौन नही होते, कभी वाट्सऐप, कभी फेसबुक, कभी ट्विटर के माध्यम से उनकी संचार प्रक्रिया सदैव चलती रहती है। सुबह उठकर वे धार्मिक व आध्यात्मिक क्रियाओं के स्थान पर सर्वप्रथम वाट्सऐप या फेसबुक का एकाउन्ट खोलते हंै, और कभी-कभी तो रात को उठकर भी। वे मशीनी युग में जी रहे हैं और स्वयं के जीवन के प्रति भी संवेदनशील नहीं हैं। वे क्या चाहते है उनके पास इस विषय पर सोचनें का भी समय नहीं है। ऐसे समय में युवाओं को एस0राधाकृष्णन की सीख को व्यवहार में लाने की जरूरत है।
आज की पीढ़ी में आत्म नियन्त्रण की कमी है मन वाणी और कर्म पर नियन्त्रण नहीं है। अहंकार बहुत अधिक है। अपने अहं की तुष्टि के लिए यह पीढ़ी किसी भी हद तक गिर जाती है। कभी-कभी तो वह मानवता की नृशंस हत्या करने से भी पीछे नही रहती। ऐसे समय में एस0राधाकृष्णन के विचार कि मनुष्य आत्म नियन्त्रण के द्वारा ही अपनी मंजिल तक पहुच सकता है और अपने अहं को मिटाना ही मुक्ति का मार्ग है, बड़े समसामायिक एवं ग्रहणीय लगते हैं। इतना ही नही आज सफलता जैसे ही युवाओं के हाथ लगती है उनके पैर जमीन पर नही रहते वे आसमान में उड़ने लगते हैं। परिणामस्वरूप उनके मित्र, शुभचिन्तक आदि उनसे दूर होते जाते है। और इसकी परिणति अकेलेपन के रूप में होती है। अपनी खुशी और दुखः साझा करने के लिये उनके पास अपने नहीं होते। परिणामस्वरूप शनैः-शनैः वे अवसाद के शिकार होते जाते हैं। इसलिये एस0 राधाकृष्णन युवाओं को आकाश में उड़ते हुये भी अपने पाॅंव जमीन पर दृढ़ता से जमाये रखने के लिए सचेत करते हैं।
एस0र ाधाकृष्णन मानवता के पुजारी है वह युवाओं को समझाते है ‘हमारी मानवीय प्रकृति हमेशा एक है, उसकी आकाॅंक्षायें आदर्श हमेशा एक जैसे है चाहें चमड़ी अलग अलग क्यों न हो।’ आज युवा धर्म, जाति, संस्कृति, प्रान्त, सम्प्रदाय के नाम पर आपसी फूट का शिकार हैं, आये दिन संघर्ष व आन्दोलन होते हंै, जिनमें मानवता दम तोड़ती दिखती है। उ0प्र0 के मेरठ दंगे, दादरी काण्ड, कुलवर्गी प्रकरण इसके ताजा तरीन उदाहरण हैं। विश्व पटल पर फ्रांस में राष्ट्रीय दिवस पर हुई आतंकवादी घटना इसका ताजा तरीन उदाहरण है। आज विश्व एकता खतरे में प्रतीत होती है, अतः एस0 राधाकृष्णन की विश्व मानव एवं नैतिक आन्दोलनों की संकल्पना स्वीकार्य लगती है। वे विश्व शान्ति को एक सपना नही आवश्यकता मानते थे।
आज की युवा पीढ़ी को डाॅ0 एस0 राधाकृष्णन के विचारों से सीख लेने की जरूरत है। उनके विचारों को अपनाकर यह पीढ़ी सफलता के अनन्त आकाश में अबाध गति से विचरण कर सकती है और शाइनिंग इण्डिया और मेक इन इण्डिया का सपना सच कर सकती है। आइये मिलकर मनुष्य बनने का संकल्प ले क्योंकि ‘मानव दानव बन जाता है तो यह उसकी हार है अगर महामानव बन जाता है तो यह चमत्कार है और मानव मनुष्य बन जाता है, तो यह उसकी जीत है’। आइये मिलकर इसी ‘जीत’ का स्वप्न देखें और इसे साकार करें तभी सच्चे अर्थों में हम डाॅ0 राधाकृष्णन का जन्म दिवस मनायेगें।
(आज के स्वतन्त्र भारत में प्रकाशित लेख)
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