काम आई माॅं की सीख
माॅं रसोई में थी। मेरी छोटी बहिन तनु स्कूल से घर आयी। कंधे पर स्कूल बैग टांगे, हाथ में पानी की बोतल लटकाये, पसीने से लथपथ, थकी हारी सी मानो कि दुनिया के सारे कष्ट सहकर आयी हो। माॅं दौड़कर पानी लेकर आयी और उसे अपने हाथों से पानी पिलाने लगीं, प्यार भरी नजरों से उसे एक टक निहारिती हुई। जैसे-जैसे तनु पानी पी रही थी, माॅं के चेहरे पर चमक आ रही थी, जैसे कि तनु का हर घॅूंट माॅं की प्यास बुझा रहा हो। इतने में आया तनु के कपड़े लेकर आ गई और बोली, ‘बीबी जी! हम बदल देते हैं बिटिया के कपड़े’ माॅं ने कहा, ‘नही, तुम रसोई देखो’ और इतना कहकर उसके हाथ से कपड़े ले लिये। आया रसोई में चली गई माॅं ने तनु के सिर से आसमानी कलर के हेयरबैन्ड में लगी पतली काली चिमटियाॅं निकालीं और ड्रेसिंग टेबिल का ड्रार खींचकर उसमें रख दीं। हेयर बैण्ड निकाला उसे ड्रेसिंग टेबिल की साइड की अल्मारी में रखा और आई कार्ड निकालकर दीवार की कील पर टांग दिया। एक एक करके टाॅप के बटन खोले और गले के ऊपर से टाॅप उतारा और स्कर्ट का हुक खोल कर पैर के नीचे से स्कर्ट निकाला। जब माॅं तनु के कपड़े बदल रहीं थीं तो उनका संवाद तनु से जारी था कभी शाब्दिक और कभी अशाब्दिक। माॅं ने तनु से पूछा, ‘बेटा! आज स्कूल में क्या-क्या हुआ।’ तनु बोली, ‘मम्मीऽ...... पता है...., आज स्कूल में पावनी से मेरा झगड़ा हो गया।’ ‘वो क्यों,’ माॅं ने पूछा। ‘क्योंकि वह मेरी जगह पर अपनी काॅपी रखे जा रही थी........। वह मेरी मेज की पार्टनर है न.......... जब मैने पावनी से कहा........ मेरी तरफ क्यों रख रही हो........? अपनी तरफ रखो अपनी कापी........, तो इसी बात पर उसने मुझसे कट्टी कर ली।’
माॅं ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और उसके पैर से काले चमड़े के जूते निकालकर, उसके सफेद रंग के घुटने तक के मोजे हाथ से गोल गोल घुमाती हुयी उतारने लगीं और दोनो मोजों को जूतों में लगा दिया। वे ऐसे लग रहे थे मानों टूटे गोलों के दो टुकड़े हों।माॅं ने तनु को काली स्कर्ट और ग्रे टाप पहना दिया और आया को आवाज लगायी, ‘‘तनु की ड्रेस तह बनाकर अलमारी में रख दो।’’ आया आयी और ड्रेस लेकर चली गई। माॅं ने तनु से कहा ‘हाथ मुॅंह धो लो। आॅंखों में पानी डालकर आॅंखों को अच्छी तरह धो लेना।’ तनु ने अच्छी बच्ची बनकर माॅं की बात मान ली। माॅं ने टाॅवेल से धीरे धीरे उसका मुॅंह पोंछा और उसे अपने अंक में भर कर सोफे पर बैठ गयीं। माॅं ने तनु से कहा, ‘तनु बेटा........! गलती तो पावनी की है .......लेकिन तुम्हारे कहने का तरीका गलत था। तुम्हे इस तरह पावनी से नही कहना चाहिये था। अगर तुम दूसरे तरीके से उससे यह बात कहतीं, तो उसे बुरा नही लगता’, तनु ने पूछा, ‘कैसे कहती मम्मी?’ माॅं ने कहा ‘प्लीऽऽज, थोड़ा सा अपनी पुस्तक उधर कर लो.........! मुझे बहुऽत परेशानी हो रही है।’ ‘तो क्या वह मेरी बात मान जाती?’
तनु ने पूॅंछा ‘हाॅं’, माॅं ने आश्वस्त होकर कहा। तनु धीरे धीरे अपना सिर माॅं की गोद में रखकर लेट गई। माॅं उसके बालों में बड़े प्यार से हाथ फिराते हुये बोली, ‘तनु! तुम्हे अच्छा नही लग रहा होगा कि पावनी से तुम्हारी बोल चाल बन्द हो गई।’ ‘हाॅं बिल्कुल नही’, तनु ने कहा। ‘इसी प्रकार पावनी को भी अच्छा नही लग रहा होगा।’ माॅं ने कहा, ‘कल तुम उससे जाकर मिल्ला कर लेना’। ‘मैं क्यों मिल्ला करूॅं........? गलती तो उसकी है‘, तनु बोली ‘तभी तो जरूरी है कि तुम मिल्ला करो। क्योंकि जिसकी गलती होती है उसे मिल्ला करने में शर्म महसूस होती है।’ ‘सऽच मम्मी’, तनु ने विस्मित होकर कहा।
तनु को माॅं की बात समझ आ गई। उसने दूसरे दिन पावनी से जाकर मिल्ला कर ली। अगली बार कक्षा-कक्ष में तनु की मेज की पार्टनर अनन्या थी तो उसने भी मेज की अधिक जगह घेर ली और जब तनु को परेशानी हुई, तो उसे माॅं की बतायी सीख याद आ गयी। इसलिये उसने अनन्या से बड़े मधुर स्वर में कहा ‘बहुत परेशानी हो रही है अनन्या! प्लीज, अपनी काॅपी थोड़ा अपनी तरफ कर लो।’ अनन्या ने तनु की बात सहर्ष मान ली। इस प्रकार, इस बार माॅं की दी हुई सीख से तनु की समस्या भी हल हो गयी और अनन्या से उसका मनमुटाव भी नही हुआ।
आज मै बड़ा हो गया हूॅं। आज मै समझ सकता हूॅं कि माॅं ने आया से तनु की पोशाक न बदलवाकर स्वयं क्यों बदली। माॅं आटे के सने हाथ झटपट झटपट धोकर आयीं और तनु की पोशाक बदलने लगीं। शायद वह तनु की पोशाक बदलते बदलते उससे संवाद करना चाहतीं थीं। तनु के अन्र्तमन में प्रवेश करके उस दिन के सम्पूर्ण घटनाक्रम और उस घटनाक्रम में तनु के व्यवहार के विषय में जानना चाहतीं थीं............। उसे सही मार्गदर्शन देकर बड़े सहज भाव से उसे मानवीय गुणों से सिचिंत करना चाहती थी। वे सफल रहीं। इस घटना के माध्यम से उन्होने तनु में विनम्रता, संवेदनशीलता और मधुर संवाद जैसे बहुमूल्य गुणों को आत्मसात करा दिया जिनका चारों ओर आज मुझे नितान्त अभाव दिखाई देता है। अगर माॅं ने आया से तनु की पोशाक बदलवायी होती तो वह उस दिन के घटनाक्रम से कुछ न सीख पायी होती। माॅं का सानिध्य और संवाद ही क्षरण होते मूल्यों से हमारी पीढ़ी को बचा सकता है।
( वीथिका स्तम्भ, दैनिक जागरण, लखनऊ, 16 नवम्बर 2015 में प्रकाशित)
No comments:
Post a Comment