सूचना एवं संचार तकनीकी के युग में हिन्दी भाषा की चुनौतियाॅं
(हिन्दी दिवस पर विशेष)
डाॅ0 रत्ना गुप्ता
(शिक्षाविद्)
14 सितम्बर को हिन्दी दिवस है। इस दिन संविधान ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर सम्पूर्ण भारत में यह दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
हिन्दी भारत के एक बड़े जनसमूह की मातृभाषा है मातृ भाषा अपने मातृ-पिता से प्राप्त भाषा है। उसमें जड़ है, स्मृतियाॅं है व विंव भी। मातृभाषा को एक भिन्न कोटि का संास्कृतिक आचरण देती है। जो किसी अन्य भाषा के साथ शायद संभव नही है। मातृभाषा के साथ कुछ ऐसे तत्व जुड़़े होते है जिसके कारण उनकी संप्रेषणीयता उस भाषा के बोलने वाले के लिये अधिक होती है।
आज सूचना संचार तकनीकी ने हिन्दी भाषा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बहुमूल्य साहित्य अन्र्तजाल पर उपलब्ध है। हम अपने प्रिय साहित्यकार की रचना कभी भी कहीं भी पढ़ सकते है, जिन साहित्यकारों का साहित्य, अन्र्तजाल पर नही है उसको डिजिटलाइज्ड करने का प्रयास किया जा रहा है। अभी हाल ही में लखनऊ में आयोजित भगवतीवती चरण वर्मा के जन्म दिवस समारोह में उनके साहित्य को डिजिटलाइज्ड करने का आश्वासन दिया गया। इसके अतिरिक्त बहुत सी हिन्दी पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन भी आन-लाइन होता है जैसे हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश, बाल वाणी और साहित्य भारती जैसी उत्कृष्ट पत्रिकाओं का प्रकाशन आॅन लाइन करता है।
इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर की कुछ संस्थाऐं जैसे एन0ई0यू0पी0ए0, एन0सी0ई0आर0टी0, एन0सी0टी0ई0 भी हिन्दी भाषा में परिप्रेक्ष्य, आधुनिक भारतीय शिक्षा प्राथमिक शिक्षक और अन्वेषिका जैसे प्रतिष्ठित जर्नस का आन लाइन प्रकाशन करती है। फेसबुक और ब्लाग्स पर भी लोग लेखन कार्य करते है। जिससे नये लोग भी लिखने को प्रेरित होते है। हिन्दी सिनेमा ने भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार में बड़ी भूमिका निभाई है। वास्तव में कुछ हिन्दी कलाकार विदेशों में इतने लोकप्रिय है कि उनकी फिल्में देखने के लिये लोग हिन्दी सीखते है।ं लाखों रूसवासियों ने फिल्मों को समझने के लिए ही हिन्दी सीखी। रूस के पूर्व राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन का तो पसंदीदा गाना ही था ‘आवारा हूॅं।’ अमेरिका और जापान में भी हिन्दी सिखाने वाले स्कूलों में चर्चित हिन्दी फिल्मों के संवादों और गानों के माध्यम से हिन्दी सिखाई जाती है। लेकिन सूचना संचार तकनीकी का एक स्याह पक्ष भी है। इसने हिन्दी भाषा जैसे कौशलों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
बात लेखन कौशल में गिरावट से शुरू करते है। संदेश और ई-मेल में अक्षरों की सीमा निश्चित होती है। इसलिये मितव्ययी भाषा का प्रयोग करते है इसके लिये स्लेंग शब्दों या वर्चुअल शब्दों का प्रयोग करते है। जल्दी की वजह से व्याकरण का ध्यान भी नही रखा जाता। बहुत से नवयुवक व्यवहार में भी इसी भाषा का प्रयोग करने लगते है। परीक्षा पुस्तिका में भी ऐसे उदाहरण देखने को मिल जायेगें। इस प्रकार आज की पीढ़ी की लिखावट त्रुटिपूर्ण हो रही है दूसरी बात लिखावट के सन्दर्भ में यह है कि हिन्दी के टंकण में अधिक समय लगता है इसलिये हिन्दी को अंगे्रजी में लिखते हैं अर्थात वाक्य विन्यास हिन्दी का होता है और लिपि अंग्रेजी की। साथ ही ब्लाग लिखने वाले सोचते हैं कि अगर वे अंग्रेजी में लिखते है तो उनका ब्लाग अधिक लोग पढ़ेगें तथा अंग्रेजी पत्रिका समाचार पत्र और जर्नल में प्रकाशन या यू-टयूब पर अंग्रेजी में लोड किया हुआ उन्हे अधिक बड़े दायरे में पहचान दिलाएगा। इसलिये वे लोग जो समान रूप से हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा पर अधिपत्य रखते है वे भी अंग्रेजी की ओर ही रूख कर रहे है।
इन नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिये शैक्षिक, सामाजिक एवं सरकारी प्रयास करने होगें। हिन्दी माध्यम के अच्छे स्कूल खोलने होगें, हिन्दी को विज्ञान आधारित बनाना होगा, हिन्दी पुस्तकों के प्रति नवयुवकों का रूझान बढाना होगा, इसके लिये सचल पुस्तकालयों के माध्यम से हिन्दी पुस्तकों को पाठकों के करीब लाना होगा एवं विद्यालयी एवं जन पुस्तकालयों में अधिकाधिक हिन्दी भाषा एवं साहित्य की पुस्तकें रखनी होगी। हिन्दी पुस्तक मेलों का जगह जगह आयोजन करना होगा। पाठ्यक्रम के अन्तर्गत हिन्दी पुस्तक मेलों के भ्रमण को अनिवार्य करना होगा, हिन्दी साहित्य, हिन्दी भाषा एवं व्याकरण तथा हिन्दी की रचनाओं के लिये दिये जाने वाले पुरस्कार सम्बन्धी विषय-वस्तु को सम्मिलित करना होगा, हिन्दी लेखन एवं वाचन प्रतियोगिताओं का आयोजन करना होगा, साहित्य के शिल्प पर कार्यशालाओं का आयोजन करना होगा एवं अधिकाधिक काव्य गोष्ठियों एवं काव्य सम्मेलनों का आयोजन करना होगा। समय-सारिणी में एक चक्र पुस्तकालय के लिये आबंटित करना होगा एवं पुस्तकालय में छात्रों की उपस्थिति को सुनिश्चित करना होगा। यह सब हमें प्राथमिक स्तर से ही शुरू करना होगा लेकिन सबसे पहले शिशुकाल से ही माता-पिता को बच्चों को टाटा, बाई-बाई, गुडमार्निंग के स्थान पर शुभ विदा, शुभ प्रभात कहना सिखाना होगा और हमें हिन्दी में हस्ताक्षर करने का प्रण लेना होगा। जब मोदी गुजराती प्रदेश छोडकर हिन्दी प्रदेश आ सकते है, जब हम 1857 की लड़ाई हिन्दी में जीत सकते है तो संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी की लड़ाई क्यों नही जीत सकते। हमें हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने का पुनः प्रयास करना होगा एवं हिन्दी एक अविकसित भाषा है इस धारणा को दूर करना होगा। हिन्दी एक जानदार भाषा है, वह जितनी बढ़ेगी उतना ही देश का मान होगा। इसलिये हमें हिन्दी को गंगा नही बल्कि समुद्र बनाना होगा।
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