लैंगिक समानता आधारित समाज के लिए पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तकों में सुधार जरूरी
डाॅ0 रत्ना गुप्ता
14 अप्रैल को डाॅ0 बी0आर0 अम्बेडकर का जन्म दिवस है उन्होने अपने हिन्दू कोड बिल में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की थी, लेकिन स्वतन्त्रता प्राप्त करने के 68 वर्ष बाद भी हम उनके लैंगिक समानता आधारित समाज के स्वप्न को साकार नही कर पाये हैं इसका कारण है शैक्षिक लिंग भेद। डिस्ट्रिक्ट इन्फार्मेशन सिस्टम फाॅर एजूकेशन (2011-12) की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं की साक्षरता 65.5ः और पुरूषों की 82.2ः है प्राथमिक स्तर पर लड़कियों का नामांकन 48.35ः और उच्च स्तर पर 17ः जबकि लड़कों का 20ः है। आल इण्डिया सर्वे आन हायर एजूकेशन 2010-11 के अनुसार स्नातक एवं परास्नातक पाठ्यक्रमों में लड़के एवं लडकियों का नामांकन क्रमशः 45ः एवं 55ः, जबकि पी0एच0डी0 में, 62ः एवं 38ः है।
जेण्डर गैप रिपोर्ट (2015) के अनुसार 145 देशों में भारत की श्रेणी, महिलाओं की शैक्षिक उपलब्धि में 125वीं है और राजनीति में नौवीं है। वास्तव में महिला भारत में राजनैतिक दृष्टि से बड़ी सशक्त है। विभिन्न राज्यों में सर्वोच्च राजनैतिक पदों पर महिलाओं की उपस्थिति इसे विश्व में दूसरा स्थान दिलाती है। अमेरिका जैसे प्रगतिशील देशों में भी अभी तक सर्वेाच्च राष्ट्रपति पद पर महिला आसीन नही हुयी है जबकि हमारे यहाॅं प्रतिभा देवी सिंह पाटिल पहले ही राष्ट्रपति पद को सुशोभित कर चुकी है।
वर्तमान में मानव संसाधन एवं विकास मन्त्रालय स्मृति ईरानी के पास है अर्थात एक महिला के हाथों में ही महिलाओं को शिक्षित करने की जिम्मेदारी है लेकिन सर्वोच्च पदों पर महिलाओं के होने के बावजूद भी आम महिलायें शैक्षिक रूप से पुरूषों के बराबर सशक्त नही हो पा रही है और हम ‘प्लेज फाॅर पैरिटी’ को पूरा नही कर पा रहें है।
आखिर कारण क्या हैं? आइये देखते हैं।
हमारी संस्कृति में विवाह अनिवार्य माना जाता है, विवाह न करने पर महिला को सम्मान की दृष्टि से नही देखा जाता। कई इलाकों में तो आज भी बाल-विवाह प्रचलित है इसके अतिरिक्त हमारे यहाॅं विवाह की आयु 18 वर्ष है, यह वह उम्र है जब तक शिक्षा पूरी नही हो पाती, इस प्रकार विवाह की अनिवार्यता और कम उम्र में विवाह महिलाओं को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर देता है मुथेजा, पापुलेशन फाउन्डेशन आॅफ इण्डिया, की निर्देशक के अनुसार, ‘‘विवाह पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं के भविष्य को अधिक सीमित कर देता है।
दूसरा कारण हमारे समाज में दहेज प्रथा का अनेक सरकारी प्रयासों के बावजूद, आज भी प्रचलित होना है। दहेज के बोझ की वजह से माता-पिता लड़कियों की पढ़ाई पर अधिक खर्च नहीं करना चाहते क्योंकि वे जानते है कि उनकी लड़की चाहें कितनी भी सुशिक्षित क्यों न हो, सुयोग्य वर के लिये उन्हे विवाह पर विपुल धन खर्च करना ही होगा।
तृतीय कारण हमारा पुरूष सत्तात्मक समाज है। हमारे यहाॅं महिलाओं का प्रथम दायित्व गृह-कार्य और बच्चों की परवरिश समझी जाती है, नौकरी करना आवश्यक नही समझा जाता। यह परम्परागत सोच भी महिलाओं की शिक्षा में बाधक है।
साथ ही साथ विद्यालयों का पहुॅंच से बाहर होना, जहाॅं न बिजली है न आवागमन की सुविधायें है, सभी विद्यालयों में महिला प्रसाधन का न होना और महिला शिक्षकों की सहभागिता अनुपात से कम होना भी महिलाओं के अशिक्षित होने के कारण हैं क्योंकि इन्फार्मेशन सिस्टम फार एजूकेशन (2011-12) की रिपोर्ट के अनुसार, 72.16 प्रतिशत विद्यालयों में महिला प्रसाधन है लेकिन प्राथमिक स्तर पर यह प्रतिशत 65.4 है। महिला शिक्षकों का प्रतिशत प्राथमिक स्तर पर 46.27 है तथा आल इण्डिया सर्वे आॅफ हायर एजूकेशन के अनुसार ‘‘उच्च स्तर पर 59 प्रतिशत महिला शिक्षक हैं। बहुत से अभिभावक पुरूष शिक्षकों से अपनी बेटियों को पढवाना पसन्द नही करते तथा बहुत सी लड़कियाॅं स्वयं भी पुरूष शिक्षकों से पढ़ने में संकोच करती है।
इसके अतिरिक्त महिला हिंसा, निम्न स्वास्थ्य स्तर, जागरूकता की कमी और जेन्डर वायज्ड पाठ्य पुस्तकें भी महिलाओं की शिक्षा के अवरोधक हैं, एन0सी0ई0आर0टी0 की प्राथमिक स्तर की पाठ्यपुस्तकों का लैंगिक विष्लेषण दर्शाता है कि 18 पुस्तकों में महिलाओं को नर्स, शिक्षिका और गृहणी की परम्परागत भूमिकाओं में, जबकि पुरूषों को मुख्य व्यवसायिक भूमिकाओं में चित्रित किया गया है।
इन चुनौतियों पर विजय पाने के लिये विवाह के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा, विवाह की आयु बढ़ानी होगी, समाज को लड़कियों के प्रति संवेदनशील बनाना होगा, इसके लिये शैक्षिक एवं सामाजिक स्तर पर ‘जेन्डर सेन्सटिव ट्रेनिंग प्रोग्राम’ की शुरूआत करनी होगी। साथ ही साथ विद्यालयों को महिलाओं की पहुॅंच में लाना होगा, महिला शिक्षिकाओं की अधिकाधिक नियुक्ति करनी होगी, विद्यालयों में प्रसाधन सुविधाओं को सुनिश्चित करना होगा पाठ्यक्रम में आत्मरक्षा एवं स्वास्थ्य कार्यक्रमों एवं महिला जागरूकता कार्यक्रमों को सम्मिलित करना होगा, पाठयपुस्तकों को सुधारना होगा जो महिलाओं को कमजोर तरीके से चित्रित करती है तथा इनमें ऐसी विषय वस्तु को स्थान देना होगा जो महिलाओं को प्रेरित एवं सशक्त कर सके जैसे, विकसित देशों में महिलाओं की दशा, महिला अधिकार एवं कानून, महान महिलाओं की जीवनियाॅं, महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता आदि, तभी हम शैक्षिक लिंग भेद को मिटा पायेगें तथा अम्बेडकर के लैंगिक समानता आधारित समाज के स्वप्न को साकार कर पायेगें। यही उनके जन्मदिवस पर उन्हे सच्ची पुष्पांजलि होगी।
स्वतन्त्र भारत शाहजहाॅंपुर समाचार पत्र में 16 नवम्बर 2016 को प्रकाशित